पारंपरिक परिधान

भारतीय संस्कृति का समृद्ध इतिहास और विविधता उसके पारंपरिक परिधानों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। भारत का हर क्षेत्र अपने विशेष परिधान के लिए प्रसिद्ध है, जो उस क्षेत्र की परंपराओं और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है।

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तरी राज्यों में, साड़ियों का प्रमुख स्थान है। यहां की बनारसी साड़ियाँ विश्वविख्यात हैं, जो अपने रेशमी कपड़े और जटिल जरी के काम के लिए जानी जाती हैं। महिलाओं के परिधान में लहंगे और दुपट्टे भी व्यापक रूप से पसंद किए जाते हैं। इन परिधानों पर बारीकी से किया गया कढ़ाई का काम इन्हें अद्वितीय बनाता है।

गुजरात और राजस्थान का नाम आते ही वहां की रंग-बिरंगी घाघरा-चोली, ओढ़नी और बंधेज व लहरिया डिज़ाइन की बात होती है। इन परिधानों की विशेषता उनकी बेमिसाल रंग योजनाएं और मिरर वर्क है जो पारंपरिक त्योहारों और विशेष अवसरों पर पहने जाते हैं।

पश्चिम बंगाल की पारंपरिक साड़ी, तांत, अपने बेहतरीन सूती कपड़े के लिए प्रसिद्ध है। इसी तरह कांचीपुरम साडिय़ं दक्षिण भारत की शान हैं, जिनकी रेशमी बुनाई और पारंपरिक डिजाइन लोगों को आकर्षित करती है। यहां महिलाओं के अलंकारों में मंदिर आर्टिफैक्ट्स की झलक देखने को मिलती है।

महाराष्ट्र का नौवारी साड़ी, जिसे लुगड़ा भी कहा जाता है, अपनी विशिष्ट शैली के लिए जानी जाती है। यह विशेष रूप से गणेश चतुर्थी और मराठी समारोहों में पहनी जाती है। पंजाब का सलवार-कमीज और फुलकारी दुपट्टा भी अपनी विशेष पहचान रखता है, जो वहां के लोगों की जीवंतता और ऊर्जा को दर्शाता है।

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी मनमोहक पारंपरिक परिधानों की एक समृद्ध धरोहर है। यहाँ के परिधान पूर्ण रूप से हस्तनिर्मित होते हैं और उनमें स्थानीय कला का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है।

भारतीय परंपरागत परिधानों की यह विविधता एक प्रकार से भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और विभिन्नता का उत्सव है। ये परिधान न केवल पहनने वाले को सुंदरता प्रदान करते हैं बल्कि पीढ़ियों से चलती आ रही परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को सजीव भी रखते हैं। भारतीय पारंपरिक परिवेश का यह रंग-बिरंगा संसार हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है और यही इन परिधानों की विशिष्टता है।